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Nayi Saans Nayi aas: ka prakash, naya prakash: A poem by Balika Sengupta

***नयी सांस नयी आस :का विश्वास, नया प्रकाश ***
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सुन लो बंधु पल पल प्रति क्षण
आज नव प्रकाश से उल्लासित आलोकित मन
नवीन गाथाओं से होगा आच्छादित
नित नव सुगंध से हो सुवासित
नव आकांक्षाएं खिल खिलकर पल्लवित
गढेंगी एक और काल क्रम की कहानी रे
आज पुनः आशाओं के दीप जल उठे
जग उठा जोश दौड़ पडा़ रगों में
अटल अचल अविरल अनवरत हो अडिग
अनंत अनंतर चलने की रवानी रे
कि आज निखर निखर कर विस्तारित
प्राणों का प्रतिबिंब दृश्यमान हो
क्या खूब.. अमर बन पडा निशानी रे
मृदु मृदुल स्मित हास परिहास के आभास का
संगम बनी पुकारती हर आकुल कंठ की वाणी रे
ये किस रेत पर देखो धूप सा सोना चमक रहा
मौसम मौसम पनघट चुमे, गली गली गांव गांव झूमें
आज आंगुतक इस नव बेला में
बहती नदियां कल कल करती
बोल पड़ी कानों में चहकती
आओ पथिकों मेरे तीरे
तनिक तो सुस्ताओ धरकर धीरज धीरे
कि आज मीश्री सी हो गयी मीठी
मेरी स्तोत्र का पानी रे
हर आंखों की चमक खुद कर रही बयां
ऐ नया साल, वाह रे तू कमाल
अहो तेरा न कोई सानी रे
ये आलोकित भोर का सौरभ गौरव
 दमका मुखड़ा,चमकी बिंदिया
खोला घूंघट उषा रानी ने
शरमों हया की सोंधी लालिमा संग
कयी राज खोले विप्लव शाम सुहानी अनजानी रे
बोल पड़ी गुनगुनाती डोलती दुनिया आनी जानी रे
चलते चलो तुम बढे चलो तुम
हे अमर पथ के राही
करेगी मदद घनघोर दुर्गम पथ पर
बनाएगी सुगम चलेगी चमकेगी संग संग दामिनी रे
अहो,हे मशाल आरोही, पथ प्रहरी, हो संकल्पित
साथ चलेगा तेरे संग काफिला, तू बढता चला चल
न सकेगा कोई तुझे हिला, लेकर प्रेरणा तेरे चेष्टाओं सफलताओं से
दुनिया देखेगी, पाएगी हौसला, बनेगी तेरी अनुगामिनी रे….