Mausam: A poem by Rajkumar Gupta


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हर मौसम की अपनी ही बोली अपनी ही जुबानी है,
जानीपहचानी है प्रकृति फिर भी लगता है अनजानी है,
मन मे हिलोरे उठ रहीं और यादों के तूफान उमड़ रहे
प्रत्येक मानव के जीवन में मौसम से जुड़ी कोई कोई कहानी है
 
गुलमोहर महके अमलतास फूले डाली डाली आम गदराया है
कोयल ने मस्ती में डूब कर कहा गर्मी का मौसम आया है
धरती की उर्वरा बड़ेगी सूरज की तपन का है बड़ा लाभ
दोपहर में अमराई के नीचे चौसर का खेल जमाया है
 
बादल गरजे, सुखिया की कुटिया देखो थरथर कांप रही
इस बरस शायद गिर ही जाये मन में ऐसा भाँप रही
नदीनाले, पोखरतालाब सभी लबालब भर गये जल से
सबकी सुख मिले ये सोचकर सुखिया को संताप रही
 
सर्दी के मौसम ने बड़े जोरशोर से आतंक फैलाया है,
खिड़किया दरवाजे बन्द करके सबने अपने आप को बचाया है,
धूप में बनाया, धूप में ही खाया धूप में शरीर को उष्ण रखा
रात में आग तापी, राजाई में घुस कर नींद को बुलाया है,
 
हर्षातिरेक हो हदय में तो हर एक मौसम सुहाना है,
काल की गणना ही तो मौसम का आनाजाना है,
पंत, निराला, कालिदास, अयेज्ञ में मौसम पर कमाल चलाई
 

अति संकोच के साथराज़का ये छोटा सा नजराना है.



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