पधारो ऋतुराज वसंत
अधिप तुम अनन्त
फैला दिगदिगनत !
तुम्हारा ये अनुपम सौंदर्य
वीणा का सुर माधुर्य
सुकोमल कौमार्य !
दूर तक छटा मनोहारी
रंग बरसे क्यारी क्यारी
अबीर गुलाल छवि प्यारी !
बरसे रिमझिम फुहार
बन में पपीहे की गुहार
अवनी पर रंगों की बौछार !
मिलन यामिनी अप्रतिम
मुखरित शाम हुई स्वर्णिम
सूर्यास्त की बेला अरुणिम।
बहती जलधारा अविरल
खगवृंद का मधुर कोलाहल
जीवन का सुंदर समतल ।