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Aprateem: A poem by Amrita Mallik


अप्रतिम प्यार, अनोखा ये रिश्ता,
स्वच्छ और पारदर्शी जैसे ओस के बूंदे टहनी पर,
जीवन से हारी, थकी हुई ये सांसें मेरी,
कुछ और ही सोच रही थी छुटकारा पाने के लिए,
तब तुम आये और बदल दी मेरी ज़िन्दगी। 

तितलियों के जैसे रंगो और खुशियों से भर दिया,
बेजान जीवन में आई फिर से जान,
डर को पीछे छोड़ के हौसला मिला आगे बढ़ने का,
तुम्हारे एक जादुई स्पर्श से ताज़ा हो गयी मैं
जैसे मुरझाए फूल खिल उठें बारिश के छींटों से।

सर्दी के मौसम में जैसे फैलती है सूरज की गरमाहट,
मैंने भी बिना सोचे समझे ही अपने मन का दरवाज़ा खोल दिया,
ठंदी हवा के झोंके जैसा तुमने मुझे दुलार किया,
बिन जतलाए और बिना ही किसी उपहार के,
दिल जीत लिया तुमने मेरा हमेशा के लिए !

दुनिया के दिखाए हुए रास्ते पर न चले,
अनचाही बातें और नियमो को रद्द करके,
आदर, सम्मान और सादगी से संपर्क को बनाया,
बस और क्या चाहिए मुझे अब?
अब तो तुम्हें है खुद को सौंप देना !