रंग बिरंगी तितली उड़ कर
बैठी फ़ूल की गुंजन पर
न महक न अर्क पी सकी
वो तो कागज के फूल थे मृगछल
भूखी प्यासी फड़फड़ाती
गिरी वो मुँह के बल जा कर
बेजान होते पंखों को जोड़
अनुरोध कर रही वो प्रतिपल ।
हे मानव जागो ! ज़रा रुको !
सुनो मेरा आग्रह पूर्ण यह क्रंदन
मत कुचलो तुम अपने वेगों से
रंग भरी मेरी उड़ान को।
रोको अपनी इस तेज़ चाल को
वर्ना तितली भी कागज की बन
सजी होगी नकली फूलों संग ।
साथ लेकर प्रकृति को प्रगति की राह पर
संरक्षण कर हर जीव जंतु जल का
करो पूर्ण अपने कर्तव्यों को।
तब गुंजित हो उठेंगे हर पुष्प पर भँवरे,
हर फूल पर तितली मंडरायेगी,
आनंद की वर्षा से राहे भी
आनन्दित हो महक जाएंगी।