दूर क्षितिज तक रोशनी का फैला न कोई उजियारा,
चिरकाल की सीमा लाँघता हुआ चला घोर अँधियारा,
मुरझा गया एक माँ का लाल, अनमोल फूल वो प्यारा,
गगन के अनगिनत तारों में समा गया आँखों का तारा ।
भाग्य में लिखित विधि के विधान ने ऐसी छड़ी घुमाई,
चक्रव्यूह में फँसे अभिमन्यु को माँ सुभद्रा न बचा पाई,
संताप से भरी असहनीय सी पीड़ा की कैसी घड़ी आई,
अपने लाल को ढूँढती रही भीगी आँखों से उसकी माई ।
माता पिता को तीर्थ कराने जब आए थे श्रवण कुमार,
जंगल में तब राजा दशरथ भी करने आए वहाँ शिकार,
जानवर समझ श्रवण कुमार के सीने से हुआ तीर पार,
विलाप में पुत्र वियोग के बूढ़े माता पिता ने दिए प्राण ।
सूर्यदेव के आवाहन से माता कुंती को हुआ पुत्र प्राप्त,
अविवाहित होने हेतु लोक लाज से दिया पुत्र को त्याग,
आजीवन पुत्र वियोग में माँ के मन में धधकती रही आग,
युद्धभूमि में कर्ण के मृत देह पर माता करती पश्चात्ताप ।
कंस की क्रूरता से माता देवकी ने खोयीं छह औलाद,
कान्हा के मथुरा वापस जाने से माँ यशोदा हुई उदास,
एक औरत का माँ बनना दुनिया का सबसे बड़ा वरदान,