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Anurodh: A poem by Rajni Sardana

 


हे! धरती के जन, ना फैलाओ प्रदूषण,

अस्त व्यस्त हों जायेगा,ये पर्यावरण, ये जन जीवन 


है सुन्दर छटा प्रकृति की, रूद्र रूप में आ जायेगी,
पोसती है जो तुझे अभी इक माँ के जैसे, वो काल बन जायेगी 

खेलते पलते जिसकी गोद में,
उसे यूँ ना खोखला बनाओ
ना इतना दूषित करो उसे,
ना अमृत को ज़हर बनाओ 

पशु,पक्षी,ये जानवर धरती,आकाश,ये पर्यावरण,
ये सभी हमारे मित्र हैं ,
सृष्टि का सुन्दर सुचित्र हैं

ना अपने फायदे के लिये ऐसे अनमोल मित्र गवाओ
ना रुष्ट करो उन्हें ना अपना
जीवन नरक बनाओ

सुनो, क्रोध रस सिर्फ़ तुम्हारे पास ही नहीं प्रकृति माँ के पास भी है
दुःख सहते-सहते अब वो आक्रोश,उफान मचाने को मज़बूर हो रही है

इसीलिए अनुरोध सब जन से यही,
करो सुरक्षा अपनी प्रकृति माँ की