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अमलतास: प्रीति पटवर्धन द्वारा रचित कविता

तुमसे मिलने की आस ,औऱ ये अमलतास
मानो कोई रिश्ता हो इन दोनों में खास
स्वर्णिम पीले फूल जब खिलते हैं कमाल
नव वधु सा लगने लगता है ग्रीष्म काल  
मानो हल्दी की रस्म हो ,लय बद्ध संगीत हो
शर्माती सकुचाती दुल्हन हो, मन में केवल मीत हो
चारों तरफ़  हो निर्मल सा सुखदायी एहसास 
 जैसे सूर्योदय की रश्मियों का पीला प्रकाश
 धीमे धीमे रिश्तों की डोर हमारी  मजबूत हो
 रूह से रूह का मिलन अंतर्भूत हो
 खिलखिलाती नाच रही हो बहनें औऱ सखियाँ
सजधज कर छेड़ रही हो भाभीयों की अखियाँ
 कोने कोने  में मानो गूँज रही हो शहनाइयाँ 
ठहाकों का शोर औऱ लोग दे रहे हो बधाइयाँ

जीवन सार्थक लगे औऱ जगा दे ये विश्वास

रहे संग तू हरदम औऱ साथ चले ये अमलतास