उनसे नज़दीकियाँ
कुछ इस कदर थी कि
कभी हम दोनों के बीच
दूरियां आई ही नहीं
न जिन्दगी भर
न मौत ही इन्हें
छीन पाई
खुदा से जो होती होगी ना मोहब्बत
यह मोहब्बत उससे भी कई गुना ज्यादा थी
एक मन में बसे मन्दिर और
तन में विराजमान शिवाले सी ही
पवित्र, विराट और पाक साफ थी
अमृत की एक गंगा सी पावन धार थी यह
स्वर्णिम अक्षरों से गुदी हुई आसमान को छूती कोई
मीनार थी यह
रूह भी स्वच्छ, दिल भी दमकता
एक सुई में पिरोते चले गये किसी
सच्चे मोतियों की एक दूसरे में समाई
आत्माओं के समग्र रूप की
नाजुक नज़दीकियों से भरी एक करिश्माई माला थी यह।