अपनी दिव्य-ज्योति देकर,ईश्वर ने मुझे गढ़ा -रचा,
अत्यंत सुकोमल भावो से,हृदय कमल को सींचा,
धरा के धैर्य-जतन से पोषित-सृजित अलबेली मैं,
रहूं संरक्षित विकल वंदना ,दे दुआ गुनाहों से बचा।
दया-करूणा की मैं उपज,सर्वेशक्ति की मुक्त संवेदना,
अंतस मे भरा लावण्य, सहज प्रेम की अभिव्यंजना,
रूप-रंग ,राग-रागिनी,शोख -चंचल ,हर कला की रंजक मैं,
मेरी कंचन काया अद्भुत, ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ परिकल्पना ।
परख नही किया जमाने ने सम्मान,अबला निरीह किया,
मेरी पसंद और कोमल काया को, हरशुं अपमान दिया,
श्रृंगार पसंद किया है अब खुद के स्वाभिमान से भरपुर,
किसी की क्या मजाल , अपनी राह को खुद से चुन लिया।
श्रृंगार मेरा अभिमान,मेरी चाहतों का अभिमान है ,
मेरा मान-दर्प भी ,मेरी शालिनता का अभियान है,
स्वप्न अपने सारे साकार करूंगी ,है पक्का इरादा,
नर्म हृदय है चाहे मेरा,दुष्टों का प्रतिकार स्वाभिमान है।