वक्त दर वक्त बढ़ते गए, फ़ासले हमारे दरमियाँ
न जाने कब पनप गईं, बेशुमार गलतफहमियाँ
ढूंढते रहे हम दोनों सिर्फ, इक दूजे की गलतियाँ
संशय के सैलाब में डूब गईं, इश्क की कश्तियाँ
हर क्षण सुलगते रहे दिल, उठती रहीं चिंगारियाँ
न जाने कब उतर गईं, उन लम्हों की खुमारियाँ
बेवजह की जिद्द से बस, हासिल हुईं रुसवाइयाँ
सिमटते गए रिश्ते ऐसे, कि बढ़ती गईं जुदाइयाँ
बर्फ से जम गए थे लब, रह गईं थीं खामोशियाँ
कितने वर्ष यूं ही बीत गए, बिन सुने सरगोशियाँ
धीरे-धीरे धुंधला गईं, यादों की सुर्ख निशानियाँ
काश कि छोड़ देते हम, अपनी मूर्ख नादानियाँ
कितना कसकती हैं ये, बेरहम स्याह तनहाइयाँ
हर लम्हा पीछा करती हैं, बेबसी की परछाइयाँ
कब तक झेलेंगे हम, फ़ासलों की ये दुश्वारियाँ
चलो मिलकर लगाएं, खुशियों की फुलवारियाँ