फागुन आया ,मत छेड मेरा तन-मन सुमन
सुन ले कान्हा मेरा अनुनय,मारे विरह अगन
त्यज लोक-लाज ,अपने भये पराये,हुआ जग बैरन
तेरे प्रीत के रंग में डूबी,कब से सराबोर पडी़ बेचारी
नयना चंचल, भूली नीज लोक-लाज ,सुध-बुध बिसारी,
ना छेड अकेली , ना कर संग बलजोडी़,मै जंग हारी
मन-बगिया की सूखी कलियाँ सारी
रसरंग की बौझार-सा बरस जा, मनोहारी
जित देखूं तुही नजर आये,ओझल दुनिया सारी
छोड गोपियों का संग,मन मे जागी लगन
कभी सुध ना लियो क्यों मेरी,ओ मनमोहन
प्रीत पर नहीं कोई चलत अब जोर
जीया मे जगी ,नयी हुलस ,नाचे विभोर
नयनों के क्यों तीखे बाण चलाये गोविंदा
नयना बावरा हुआ, नटखट ,परेशां है जियरा
जबसे तुमसे लगी है, ये अलबेली लगन
सुध-बुध खोयी कान्हा, मुरली की धुन सुन
मनवा आतुर धीरज खोया, ढूढें हर पल चैन..
रंग दे कान्हा अबकी रंग गुलाबी-लाल
उम्र बीते बस उसकों छूटाये ना छूटे साल