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तृष्णा: नवीन कुमार भट्ट नीर द्वारा रचित कविता

प्रेम भाव का सार है तृष्णा।
रोम – रोम विस्तार है तृष्णा।।
मंजिल जब तक नहीं मिलें।
जीतनें का उपचार है तृष्णा।।
शिव शंकल्प दिलाने खातिर,
जीवन का गुलजार है तृष्णा।।
ये नहीं अकारथ होता तपना,
निश्चय नया उपहार है तृष्णा।‌।
बैर द्वेश छल दम्भ को त्यागो,
देता यह अधिकार है तृष्णा।।
“नीर” सदा हित करते जाना
स्वागत वंदन बार हैं तृष्णा।।
बड़ी पूज्य यह पावन धरती ,
चन्दन खुशबू धार है तृष्णा।।
पावन सरिता स्वर्णिम गाथा,
भव सागर का पार है तृष्णा।।
पीड़ाओं की व्यथा सुनाकर,
सच्चे मन की ज्वार है तृष्णा।।
रूको नहीं बस चलते रहिए,
दान पुण्या संस्कार है तृष्णा।।