दीवार होगी तो
कमरा होगा
कमरा होगा तो
अपना घर होगा इसीलिये
मुझे दीवार बहुत अच्छी लगती है
मुझे खुले मैदान कभी अच्छे नहीं
लगते
न इसमें कोई रास्ते दिखते
न ही कोई मंजिल
न इसमें आशियाने दिखते
न ही उनमें रहते लोग
तेज हवायें भी चारों दिशाओं से
थपेड़ों की तरह लगती हैं और
मैदान में किसी को एक फुटबॉल की
तरह ही इधर उधर फेंकने की ताकत
रखती हैं
दीवार होती है
चाहे फिर वह लकड़ी का एक
विभाजन ही क्यों न हो तो
ऐसा महसूस होता है कि
जैसे मैं तन्हा नहीं हूं
मेरे साथ कोई है
एक सुरक्षा कवच
मुझे हर समय सुरक्षा प्रदान
करता हुआ
मैं दीवारों से बातें कर सकती हूं
उन्हें अपने दिल का हाल बता सकती हूं
उन्हें ताक सकती हूं
उन पर अपने दिल की कहानी लिख
सकती हूं
कोई रेखाचित्र बना सकती हूं
फिर चाहे तो उसे मिटा सकती हूं
उस पर कोई पेंटिंग, कोई कैलेंडर
या किसी अपने बेहद खास या
अजीज की तस्वीर टांग सकती हूं
दीवार में होता दरवाजा
दीवार में होती खिड़की
दीवार में होता रोशनदान
दीवार में होता आला
दीवार के कोने में होता मकड़ी का भी
एक जाला
दीवार पर ही तो बैठती
कभी कोई तितली
बोलती कोई चिड़िया
कभी सरकती हुई चलती एक
चींटी
दीवार का सहारा लेकर ही तो
चढ़ती कोई बेल
दीवार पर ही तो भागती
इधर से उधर गिलहरियां या
विचरती बंदरों की टोलियां
दीवार पर लटक कर देखे
मेरे बचपन ने न जाने
कितने जिन्दगी के तमाशे
दीवारें मुझे बहुत अच्छी
लगती हैं लेकिन
बस ईंट, मिट्टी, कंक्रीट आदि की बनी
दिलों के बीच जो दूरियां होती हैं और
दीवारें खड़ी होती हैं
वह मुझे यकीनन पसंद नहीं।