in

चांदनी रात: काव्य सागरिका (संध्या) द्वारा रचित कविता

ये चांदनी रात मुझे देख मुस्कुराती क्यों है?
 इसमें हर वक्त उसी का चेहरा नज़र आता क्यों है?
कहने को तो है शीतल फिर मेरा दिल जलाती क्यों है? आखिर सिर्फ उसी की याद दिलाती क्यों है?
एक तड़प है दिल में और मन भी बेचैन है।
आखिर क्यों उसकी वजह से शूली पर चढ़ा मेरा रैन है?
नींद नही आती मुझे अब उसके ख़वाब से डरती हूँ।
पर सुन ले ए चांदनी रात अब भी सिर्फ उसी की बातें करती हूं।
देख लेना एक ऐसा भी दिन आएगा जब तू मुझे देखकर खुद को जलाएगा।
 क्योंकि उस वक्त तू मेरे यार को मेरी बाँहों में पाएगा।