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चाँदनी रात: अनिल कुमार श्रीवास्तव द्वारा रचित कविता

तेरी आशिकी में यह चाँद डूबा जाता है
तेरी आगोश में सितारों को लिए जाता है,
चाँदनी रात में सज धज कर तुम जो बैठी हो
शरमाई कयानात सारी गुंजती शहनाई है!
गुंजती तरन्नुम है यह छेड़ता मल्हार कौन
सिंदूरी सी आभा और चंद्रहार दिए जाता है,
जुम्बिशों की बारिशें और पुष्पहार दिए जाता है
 रात चाँदनी की बन वह तुममें जिए जाता है!
निढाल चाँद कामदेव बना कमान खिंचता है
लक्ष्य को निशान साध प्रेम पुष्प फेंकता है,
नेह का आमंत्रण लिए गेसुओं से खेलता है
वितान चाँदनी की तान सम्पूर्ण स्वत्व खोता है!
ढ़ूंढ़ती तूझे लटों में रात चाँदनी की बन
बावरी बनी फिरूँ मैं सोलहों कलाओं में,
संचार तार प्यार का वह गुनगुनाए जाता है
कोंपलें मधुमास की वह फिर से बोए जाता है!
तारों की बारात लिए वह कभी जो आएंगे
आकाशगंगाओं के पथ फिर नेह से नहाएंगे,
मचलती मैं उठूंगी पुन: नक्षत्रों की हार थामें
वरण करूँगी मांग भर ले आशिष चाँदनी रात में!