इश्क की तन्हाईयों ने
चाक दर्द-ए-दिल किया,
क्या करूँ जो भा गया
यह चेहरा गुलाब सा!
मिना-ए-सागर साथ है, फिर
जिश्म-ए-इश्क लाजवाब सा,
और गुलाबी होंठ भी फिर
दरमियाँ हिजाब सा।
है दमकती चांद-सी फिर
आँखों की आवारगी,
सुर्ख होंठों सी दहकती
लिए चेहरा गुलाब सा।
झुक गई जो शर्म से
लिए हुस्न माहताब सी,
और तरसती रूह भी फिर
आगोश-ए- वस्ले यार की।
हुस्न की मादकता ,और
याद बॉंके यार की,
गुल गुलाबी रात सी, और
चेहरा गुलाब सा।