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Khadi Dehleez par: A poem by Dr. Sonia Gupta

खड़ी दहलीज पर कबसे, कहीं से तू सजन आए,
झलक तेरी बलम देखूँ, कहीं दिल चैन ये पाए|

न पूछो किस तरह तुम बिन गुज़ारे रात दिन मैनें,
सजाये ख़्वाब बस तेरे नयन में ऐ सजन मैनें,
चले आओ पिया जल्दी कहीं धड़कन न थम जाए |
खड़ी दहलीज पर…………………….

बड़ा बेदर्द है रे तू, गया वादा किये मुझसे,
कहा था लौटकर प्रियसी मिलूँगा मैं जल्द तुझसे,
नजाने क्यूँ तुने मुझको स्वप्न झूठे से दिखलाए |
खड़ी दहलीज पर…………………….

विरह के गीत दिल गाये, तुझे ही याद करता है,
हरिक पल आह ये प्रियवर सदा तेरी ही भरता है,
घने बादल बने आंसू, नयन मेघा है बरसाए।
खड़ी दहलीज पर…………………….

अरे मज़बूर हूँ इतनी, न घर से मैं निकल सकती,
हरिक पल रास्ता लेकिन, निगाहें ये तेरा तकती,
ज़माना ये बड़ा ज़ालिम, सितम मुझपर बड़े ढाए|
खड़ी दहलीज पर…………………….

तड़पती मीन जैसे नीर बिन, मैं भी सजन ऐसी,
बिना प्रियतम भला ये जिंदगी सोचो ज़रा कैसी,
तुम्हारी राह तकते गुल मुहब्बत के हैं मुरझाए |
खड़ी दहलीज पर…………………….

घुटन में जी रही कबसे, मुझे आज़ाद होना है,
मुहब्बत में पिया तेरी, मुझे आबाद होना है,
यही सोचूँ कि कब आकर मुझे आज़ाद करवाए |
खड़ी दहलीज पर…………………….

मुझे है आस बस तुझसे, नहीं उम्मीद इस जग से,
पङी सूनी सी ये गलियां, हैं राहें बंद ये कब से,
तरसते कर्ण ये मेरे, तेरी आहट के सुन जाए ।
खड़ी दहलीज पर…………………….