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आज़ाद परिंदे: शगुफ्ता प्रवीण द्वारा रचित कविता

पंछी बनकर उड़ जाओ तुम
रोक ना पाए कोई ज़ंजीर तुम्हें,
तोड़ दो सारे बंधन तुम
कर ना पाए कोई तसखीर तुम्हें।
कोई सरहद फिर ना रोक पाए
भर लो उड़ान तुम हौसले की,
जैसे हो कोई आज़ाद परिंदा
ना मजबूरी हो किसी फासले की।
आवाज़ दो खुशियों को फिर
पल रुक जाए तेरे क़दमों में,
तेरे इन हाथों को चूमकर
हर फूल खिले, हर दिल मचले।
जो आवाज़ लगाओगे तुम इनको
खुशियाँ बन जायेंगी तक़दीर तेरी,
ग़म जो हैं,  सारे मिटकर फिर
बनायेंगे इक नयी तस्वीर तेरी।
हो आज़ाद परिंदा इतना प्यारा
कर ले जो क़ैद फिर जग सारा ।।