एक खिलते फूल सा
देखा था सपना
रात्रि की बेला में
बंद आंखों से
उन पर पड़ी हुई मेरी पलकों की
घनेरी चिलमन के तले
सुबह होने पर
निद्रा भंग हुई
सपना टूट गया
एक कांच के बर्तन सा
वह फूल जो खिला था
रात्रि के स्वप्न में
वह भी कहीं न मिला
कुछ अहसास मन में जगा तो
यह आभास हुआ जैसे कि
मैं ही वह फूल हूं
एक बिछड़े और टूटे हुए
सपने का बिखरा हुआ कोई अंश और
वह भी मुरझाया हुआ।