जब हरियाले गेहूं की बालें सुनहरी हो रही हो ।
और सरसों भी पककर कुछ सांवरी हो रही हो।।
तब किसान को दिखता है खेतों में गुजरता बसंत।
बस प्रेमी को ही नहीं बागों में दिखता बसंत।।
जब हवा चलती है और यह खेत लहराते हैं।
अन्नदाता के मन को प्रेयसी सा गुदगुदाते हैं।।
कितने ही सपने जुड़ गए हैं इन खेतों की पैदावार से।
छुटकारा पाना है अबकी सूदखोर साहूकार से।।
बेटी को भेजना है अबकी स्कूल बहुत दूर।
बेटा चला जाए कॉलेज और सीखे कुछ शऊर।।
पत्नी की धोती में पैबंद हज़ार, अब नई दिलानी है।
कुछ बचा तो अपने लिए नई पनही भी लानी है।।
बड़ी बेटी के हाथ भी तो पीले करने हैं अबकी साल।
एक ही फसल से कितने काम करने है अबकी साल।।
जब प्रेमी जन प्रेयसी को याद करते हैं बसंत में।
यह किसान कुदाल चलाते सोच में डूबा अनंत में।।