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रिमझिम गिरे सावन: डॉ. सोनिया गुप्ता द्वारा रचित कविता

रिमझिम रिमझिम गिरता सावन, कितने ही पल बीत लिए,
अब तो जल्दी तुम आ जाओ, आया है ‘आषाढ़’ प्रिये!

कोकिल कूके, मयूरा नाचे, भंवरा भी मुस्काय रहा,
अम्बर से बूँदें हैं टपकी, हर कण झूमे गाय रहा,
विरहा में बस हम हैं तड़पे, हर पल अपने अधर सिये!
रिमझिम…

तुम बिन सावन भी ये कैसा, कैसा हो त्यौहार यहाँ,
बिन तेरे सूना है सारा, देखो ये संसार यहाँ,
कैसे बतलाऊं बिन तेरे, कैसे ये दिन रात जिये!
रिमझिम…

तकते तेरी राहें हर पल, आँखें मेरी हार गयी,
बातें थी जो भी प्यार भरी, सारी वो बेकार गयी,
मत पूछो नैनों के आंसूं, हँसते ही हम रहे पिये!
रिमझिम…

प्यार भरी वो पहली बारिश, सजना तुमको याद नहीं?
मीठी मीठी सी वो बातें, क्या दिल में आबाद नहीं?
भूले हो सारे वो वादे, जो भी तुमने खूब किये !
रिमझिम…

दिल की धड़कन बोले तुमसे, जल्दी मुझसे आन मिलो,
ख्वाबों में तो आते ही हो, सच में भी ‘प्रिय प्राण’ मिलो,
प्रियतम तन मन अपने मैनें, तुझपर ही सब वार दिये !
रिमझिम…