in

रंग भरे मौसम में: अनिल कुमार श्रीवास्तव द्वारा रचित कविता

जब कभी मौसम अलबेला होता है
प्यार से सराबोर मतवाला होता है,
इस रंग भरे मौसम में जब दीदार होता है
हर रंग में सराबोर तुम्हारा प्यार होता है।
मैं दूर खड़ा आम की टहनियों कीओट से
मंजरियों की मादकता की मोहपाश में,
मदहोश इस रंग भरे मौसम के आगोश में
अपलक निहारता तुझे प्यार के सब रंग में।
रंगरेज बन डुबो दूँ तुझे रंग दरिया में
गढ़ दूँ एक रूप नया प्रेम मगन मैं,
कभी रंग हरा, लाल कभी रंग गेरूआ
पिताम्बरी पहन तुझे हर लूँ नयन में।
नवयौवना सी लोच और मिश्री की डली
रिझाती नयन- नक्श लिए स्निग्ध रूपसी,
इंद्रधनुषी डोर थामे क्यों निडर खड़ी
इस रंग भरे मौसम में सतरंगी षोडशी।
मेरी निगाहों के सायों में तुम सुकून पाओगी
मैं जानता हूँ तुम दिल मेरा न तोड़ पाओगी,
इस सरमाए में हर रंग तुम्हारे प्यार का मुरीद है
दूर खड़ी फिर भी मेरे साथ गुनगुनाओगी।