जिन्दा आदमी की
तस्वीर बनाई जा सकती है लेकिन
एक तस्वीर को जिन्दा कैसे करें
यह संभव नहीं लेकिन
जिससे हो प्यार तो
ऐसे ख्याल आते हैं जेहन में बार बार
तस्वीर को गौर से देखो और
एक बात यह समझो कि
इस तस्वीर के फ्रेम में कैद
तस्वीर जिस किसी की है
वह अब नहीं है जीवित लेकिन
कभी तो था जीवित तो
फिर क्यों न इस तस्वीर को
हम मानकर चलें कि
यह है उस शख्स की
एक जीवंत तस्वीर
यह खामोश है
यह नहीं बोलती तो क्या हुआ
कितनी दफा ऐसा भी तो होता है कि
किसी वजह से लोग जिन्दा होते हुए भी
चुप हो जाते हैं
कम बोलते हैं
जब सोते हैं तब भी तो नहीं बोलते
यह तस्वीर मुंह से कुछ नहीं कह रही लेकिन
इसकी आंखें बहुत कुछ कह रही हैं
मैं इस तस्वीर की आंखों की भाषा
और खामोशी को समझती हूं
मैं आज भी इस तस्वीर को
एक जीवित आत्मा की तरह ही
प्यार करती हूं
यह पाकीजा मोहब्बत की इंतहा है
कोई जिन्दा हो या मृत होकर तस्वीरों में कैद
जिनके दिलों में मोहब्बत बसती है
वह किसी के होने या न होने से कभी खत्म नहीं होती है।