मेरी प्रार्थना तभी तो प्रभु के कानों तक नहीं पहुंचती कि उनसे पहले मैं अपने माता पिता का स्मरण कर लेती हूं और भगवान से पहले उनके दर्शन करना चाहती हूं।
आज मैं मंदिर के प्रांगण से बाहर निकलकर एक घने जंगल में आई हूं और मेरी बनदेवी से अपने दोनों हाथ जोड़कर बिनती है कि वह मुझे जीवन रूपी इस घने जंगल में भटकायें नहीं अपितु मेरी सफलता का मार्ग प्रशस्त करें। मुझे अगले जन्म में एक जंगल में विचरती छोटी सी सोन चिरैया बनायें ताकि मैं जंगल में भूले भटके मुसाफिरों को उनकी मंजिल तक सही सलामत पहुंचा पाऊं। मैं हौले हौले उनके आगे आगे उडूं और वह धीरे धीरे मेरे पीछे पीछे चलें और हां हो सके तो मुझे अगले जन्म में मेरे इस जन्म में बिछड़ गये मेरे अति प्रिय मां बाप से अवश्य ही मिलवायें।