प्रेयसी प्रीतम मिल रहे, मनवा है बेचैन।
धड़कन बेक़ाबू हुई, मिलन को आतुर नैन।
मन को पुलकित कर रही, मोगरे की गंध।
माला, वेणी मिलेंगे , सोच हिये आनंद।
मन भावन शृंगार कर, आई पिय के पास।
स्वागत को तैयार है, मुख पर स्मित हास।
टीका ,झुमका , हार भी, आज बड़े हैं मौन।
कँगना पैंजनियाँ हँसे , कर कर तीखे सैन।
कजरा,बिंदी,लालिमा,आज चमकतीं ख़ास।
मास अनेकों बाद है, आया ये मधुमास।
स्पंदन दिल का बढ़ा, छुअन कँपाती देह।
साँसों की ऊष्मा बढ़ी, पिघली सरिता नेह।
मनवा बेसुध हो रहा, तन का नहीं है होश।
पूर्ण चंद्र की यामिनी, हिय में भरती जोश।
रति सी कोमल कामिनी, देखे द्विवास्वप्न।
हो जीवन मंगलमयी, कामदेव के संग।