जब उपवन में कलियां चटकने लगें,
खेतों में स्वर्ण फसलें लहलहाने लगें,
गुनगुनी धूप पल पल निखरने लगे,
तो समझ लो आ गए बहारों के दिन…
जब भोर रश्मि पे लाली छाने लगे,
आम्र की डाल पे कोयल गाने लगे,
घर आंगन गौरैया चहचहाने लगे,
तो समझ लो आ गए बहारों के दिन…
जब फूलों में मादकता छाने लगे,
मनमोहक फिज़ा गुदगुदाने लगे,
हर्षोल्लास का आभास होने लगे,
तो समझ लो, आ गए बहारों के दिन…
जब कामदेव प्रकृति को संवारने लगे,
ब्रज में गोप गोपियां नृत्य करने लगे,
कृष्ण प्रेम में डूब राधा रूप धरने लगे,
तो समझ लो आ गए बहारों के दिन…
जब दीपशिखा फागुन वरण करने लगे,
पुष्प टेसू, गेंदा, सरसों के खिलने लगे,
हर इक मन में स्नेहांकुर पनपने लगे,
तो समझ लो आ गए बहारों के दिन… !!!