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फ़ासले: सरिता खुल्लर द्वारा रचित कविता

यह फ़ासले, यह दूरियाँ क्यों हुई, हम जाने ना,
ऐसा भी वक्त था जब हम एक दूसरे की जान थे,
एक डगर पर चलते रहे, हर दर्द से अनजान थे,
कैसे भूलों यूँ तेरा हँसना ले के हाथ मेरा हाथों में,
तेरी आँखों की शरारत, मन में मधुर अरमान थे,
आह,पर नियति ने कुछ और ही लिखा था मेरे लेख में,
बांध ना पाए तुम को कैसे हम नादान थे,
खूबसूरत वादियों में कब नज़रें कब बहक गयी,
हाय क्यों हम भँवरे की हर बात से अनजान थे ,
जाने कब रस रंग में डूब गया भूल मेरे प्यार को,
हाथ छूटा कैसे, कब? हम इक दूसरे की पहचान थे,
अब फ़ैसले इतने कि सदियाँ बीत जाती हैं यूँ ही,
दर्द और आंसू भी सोचतें है कितने हम नादान थे,
भूलते क्यों नहीं हम इक दौर को जो स्वप्न था,
ज़ख़्म अब भी टीसते हैं जब फ़ासले हैं प्यार में।
था कभी वह वक़्त जब हम दो दिल इक जान थे।