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फ़ासले: गरिमा सूदन द्वारा रचित कविता

फ़ासले तब हुए जब हमने कहना छोड़ दिया और तुमने सुनना,
फ़ासले तब हुए जब हमारे आने और तुम्हारा घर से निकलने का वक्त एक हो गया।
फ़ासले तब हुए जब बातों में झिझक और औपचारिकता का समावेश हो गया,
फ़ासले तब हुए जब अपनेपन में दायरे आने लगे।
फ़ासले तब हुए जब हमने रूठना छोड़ दिया और तुमने मनाना!
फ़ासले तब हुए जब तुम्हारे अहम और मेरी नासमझी ने हमारे बीच गलतफ़हमी का बीज बो दिया।
फ़ासले तब हुए जब सुबह घर से निकलने के पहले, प्यार से तुमने मुझे बुलाना छोड़ दिया।
फ़ासले तब हुए जब हमारी करवटें लेने पर तुमने बेरुख़ी का मंज़र दिखा दिया,
फ़ासले तब हुए जब हमने तुम्हारे लिए सजना-संवरना छोड़ दिया।
फ़ासले तब हुए जब हमारे बीच नज़दीकियों ने दम तोड़ दिया,
फ़ासले तब हुए जब हम, हम से तुम और मैं हो गए!