प्रेम की चाह
जीवन रहते किसे नहीं होती लेकिन
हर किसी को यह उम्र भर
जिंदगी के एक लंबे सफर में कहां मिलता है
प्रेम को पाने का सपना गर
साकार न हो तो
इसका एक ही उपाय है कि
प्रभु से प्रेम करो
इस सृष्टि के कण कण से प्रेम करो
इस संसार के हर प्राणी से प्रेम करो
प्रेम करके ही तृप्त हो जाओ
प्रेम करके ही पूर्ण हो जाओ
प्रेम करके ही अपनी आत्मा में
शुद्धता लाओ
प्रेम सबसे करने की प्रक्रिया में पर
खुद को कभी न भुला देना
दर्पण में निहार कर अपनी छवि
प्रेम करना एक प्रभु की भक्ति सा
स्वयं से
प्रेम के सागर में डूब जाना और
खुद को कहीं पाते हुए
अपने आराध्य को हमेशा के लिए
अपने रूप सा ही
पा लेना।