in

नज़दीकियाँ: कुमार मलय द्वारा रचित कविता


अहसासों  में  दीवानगी  उठाती  है  नज़दीकियाँ
बारहा  हसीं ख़्वाबों को  जगाती है  नज़दीकियाँ !

मुस्कुराकर  सुला दिया था  जिन यादों को कभी
राह-ए-दिल पे  यादों को  बुलाती है नज़दीकियाँ !

वीरान हो चुकी  इस ज़िन्दगी के बाग़ों में सनम
जाने  कैसे कैसे  गुल  खिलाती  है  नज़दीकियाँ !

गर्म साँसों की  डोर पर  नर्म होठों  का तबस्सुम
बेताब धड़कनों की लहर उठाती है नज़दीकियाँ !

लग जाये ना  मुहब्बत पे  इस ज़माने की नज़र 
ख़ौफ़ ये जुदाई का फ़िर  डराती है नज़दीकियाँ !

कुछ नहीं  मेरा वज़ूद  गर  तुम ना हो  साथ मेरे
चुपके चुपके मेरे कान में बताती है नज़दीकियाँ !

रिश्ता ये दिल का  लफ़्ज़ों का  कोई  खेल नहीं 
एक पाक़ीज़ा अहसास दिलाती है नज़दीकियाँ !

रूह को  ढूँढते हो  मलय  ज़िस्मों की  गली में  
पाक मुहब्बत के  दीप जलाती है नज़दीकियाँ !