सांसों का सतत कारवां, अग्निपथ_सा यह सफर है,
हर दर्द और जिन्दगी तुम्हे हराने को मुस्तैद रहते है,
अपने दम और ललक को, सिने मे संभाल, आगे बढो,
आहटों के किनारों पर,स्तब्ध,मौन का स्वर-सुर सुनो।
है इतना अलौकिक नाता आत्मा-परमात्मा का,
हरदम अदृश्य होकर अंतर मे वो झांक आता,
सरिता के बीच भंवर मे फंसी, जीवन नैया को,
ताबडतोड़ झंझावातों मे भी, तिनके से उबार लेता।
स्पंदित अपने ‘मानस’ को यूंही यंत्रवत ना ढाल लो , बेवजह ,व्यर्थता के उलझनों से इसे’बोझिल ना पालो,
खुश रहना एक ‘आदत’ है , इसे खुद में स्वीकार करो,
जो भी ‘अवसर’ मिले खुशी ‘ का,उपहार-सा स्वीकार करो।
मासूम से दिल में ,एक इंद्रधनुषी ललक छूपा लेना,
क्षीतिज पार,नभ के प्रांगन मे,एक हीरा-सा चमक लेना,
जब भी घनघोर काली घटाएँ, उलझनों काआच्छादित करें,
चुपके से अपनी आभा संजोये, बेखौफ मुस्कुरा देनाह।