मृदुल मन मैं छोटी सी एक आशा
पृथ्वी पर स्वर्ग की स्थापना हो
पूरी हो मेरी अभिलाषा
ईमानदारी का बोलबाला हो
सच की शक्ति से व्यवस्थाओं का संचालन को
मानव रक्त में परोपकार की भावना प्रबल हो
सहयोग देने के लिए मनुष्य का जत्था आतुर हो
क्या परवान चढ़ेगी मेरी यह छोटी सी आशा ?
वक्ता एवं श्रोता में पारस्परिक सामंजस्य हो
ज़ुल्म के खिलाफ उठने वाले हाथ मजबूत हो
भोजन के अलावा लालच की दीमक किसी को ना लगे
स्वस्थ प्रतिस्पर्धाओं का बाज़ार हो
ईर्ष्या बिमारी का एक नाम हो
संबंधों में सुगंध ही सुगंध हो
क्या परवान चढ़ेगी मेरी यह छोटी सी आशा ?
हर इच्छा का पूर्ण होना संभव है
यदि मस्तिष्क दृढ़ निश्चयी, कड़ी मेहनत संभव है
सिर्फ अपनेआप को देवता स्वरूप बनाने का यत्न है,
तभी अपने अनुरूप ढल सकती है यह दुनिया
जन्नत, स्वर्ग भी बन सकती है यह दुनिया