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चेहरे पर मुस्कान नहीं

कल

अपने घर के दरवाजे के बाहर

मैं कुर्सी डालकर कुछ देर के लिए

धूप तापने बैठ गई ताकि

बदन में कुछ गर्मी आये और

सर्दी कुछ समय के लिए मुझसे दूर भाग

जाये

मैं सड़क किनारे चल रहे लोगों को

और खासतौर से उनके चेहरों को

बड़े गौर से देख रही थी

किसी भी उम्र के रहे हों लेकिन

किसी के चेहरे पर मुझे मुस्कान नहीं

दिखी

स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी और

कोई स्कूल की बसों में तो

कितने ही बच्चे पैदल बस्ते लादे

मेरी आंखों के सामने से निकल रहे थे

लेकिन

न किसी के मन में कोई उत्साह

दिख रहा था और न ही

लबों पर मुस्कान

चेहरे लटके हुए

मायूस

हैरान परेशान

तनावग्रस्त

भीड़ भाड़ में खुद के लिए जैसे हों

रास्ता बनाते

सब उलझे हुए

सबको अपने घर या

अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने की

जल्दी फिर शायद

अगले बेहिसाब कामों को निपटाने की

तलब

मुझे दुख हुआ और

चिंता भी

मैं सोच में पड़ गई कि

आज की आधुनिकता की

दौड़ में

इस बेवजह की भागम भाग ने

आज की युवा पीढ़ी और

बच्चों तक के मुख से

मुस्कान छीन ली है

खुद का यह ध्यान नहीं

रख पा रहे तो

अपने बुजुर्गों या

अपने से बड़े उम्र के लोगों का या

पुरानी जाती हुई पीढ़ी का यह

भला क्या ख्याल रख पायेंगे।