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चेहरा गुलाब सा: शीला एस अय्यर द्वारा रचित कविता

चेहरा खिला-खिला मानो गुलाब जैसा
रंग भी आफ़ताब सा।
शब्दों का अकाल है यारा
कैसे तारीफ करूँ मैं तुम्हारी।

लगती हो तुम, हसीन हर पल
कर देती हो तुम मुझको पागल।
गर दीवाना हो जाऊँ मैं किसी रोज़
ना मढ़ देना मेरे सर ये दोष।

गुलाबी होठों से जब मुस्कुराती हो तुम
घायल हो जाते है सनम हम ।
ना तड़पाओ मुझे, है ये गुजारिश
मेरे प्यार को ना करना तुम खारिज ।

तुम्हे किसी की नज़र ना लगे
चेहरे पे तुम्हारे मुस्कान बनी रहे ।
मेह्फूस रखूँगा तुम्हें, अपने दिल में,
यकीन कर यारा, तू मुझ पे ।