पूर्णमासी की चाँदनी रात ,एक शीतल सुंदर अहसास
आँखें अपलक देखती हैं, कुदरत का ये भव्य कमाल
हाँ,ऐसी ही मधुरिम रात में मेरी और तुम्हारी झील के किनारे हुई थी वो पहली अनकही बात
नज़रों से नज़रों की खामोश गुफ़्तगू
फिर हौले से मेरे हाथों पर तुम्हारे हाथ का स्पर्श
एक बिजली से सिरह उठा तन मन और ये अनोखा मिलन
जिसमें ये चाँद और उसके मखमली किरणें थीं गवाह
अब सब कुछ बदल चुका है
इस चाँद और इसका अमृत जैसा शीतल प्रकाश अब चुभता है सारी रात
जो आकर्षण था प्यार का इज़हार का
वो अब वक्त से सोने को झिकझिकाता है
और रुमानियत की सारी बातें
अब खोखली और महज़ शायराना है।