सिन्दूरी संध्या ,अनुराग में खरी
प्रेम हिंडोले ले रही थी प्यार से भरी
अल्हड़ हुआ था लापरवाह पवन
खिलखिला उठा था विस्तृत गगन
सामीप्य में तुम्हारे ,जैसे आया था मधुमास
स्वर्णिम हो रहा था हर सृजन आसपास
पंखुरियों ने तुम्हारी ली थी जब अंगड़ाई
भँवरों और शलभों में नव यौवना थी समायी
रक्तवर्ण लाली ने अपना आँचल था फहराया
हरित पत्तों में लिपट मधुर माणिक गीत गाया
बिखर गयी थी सुगंध प्रणय मयी चहुँ ओर
श्वेत पटल में जैसे हुआ हो तुलिका का रंगीन शोर
बरस उठे स्नेह लता से तीक्ष्ण कृष्ण चूड़ कई
मकरंद और पराग ढूंढने आये सैकड़ों भ्रमर यहीं
गर्मी की ताप में तुम्हारी है शीतल चितवन प्रखर
हृदय को स्पर्श करते, आत्मा तृप्त करते तुम गुलमोहर