जीवन के बारे में और
खुद के विषय में
कुछ न सोचो तो
बेहतर है
जीवन को और
जीवन के साथ जुड़ी
खुद की काया को
एक नदी के बहते प्रवाह सा ही
बहने दो तो
यह सही रहेगा
समय को गुजरने दो
इसे रोकने की
बांधने की
पीछे खींचकर लौटाने की कोशिश
व्यर्थ है
कुछ फलीभूत नहीं होगा
स्वयं को बस इतना भर जान
लो और
इस योग्य बना लो कि
अपना जीवनयापन ठीक
प्रकार से हो जाये
खुद की प्रतिभा को
पहचानकर
अपने गुणों का भलीभांति
विकास करना ही
किसी मनुष्य का कर्तव्य है
धर्म है
कर्म है
इससे गहरे मन के समुंदर में
उतरने की एक आम आदमी
कोशिश न करे तो ही
उसके लिए उत्तम है
अध्यात्म, साधना,
ध्यान को थोड़ा बहुत ही
अपने जीवन में स्थान दें
एक कर्मयोगी बने
महात्मा या धर्मात्मा नहीं
समुंदर के किनारे किनारे ही
टहले
इसके समीप या आगे
पांव बढ़ाने से संभव है कि
जीवनलीला ही समाप्त हो जाये
प्रश्नों के उत्तर भी कहीं मिलें
नहीं।