मुझे जो
प्रेम पत्र प्राप्त हुए
वह कोई डाकिया
मेरे घर तक
मेरे द्वार
मेरे हाथों तक पहुंचाने नहीं आया
न ही मुझे मिले यह किसी डाक से
फोन के किसी संदेश या
तार से
यह तो मैंने लिखे पाये कभी
अपने घर की छत की दीवार पे या
कभी अटके पाये अपने कमरे की खिड़की के जाल पे या
कभी पड़े पाये अपनी स्कूटी के बॉक्स में या फंसे हुए उसके हैंडल में
कैलक्युलेटर के पेंसिल सेल वाले
खांचे में
कभी अपने क्लासरूम की
दीवार पर
कभी ब्लैकबोर्ड पर तो
कभी कुर्सी या
कभी टेबल पर
किसी ने पतंग
पर भी लिखे प्रेम पत्र और
पहुंचाया उन्हें मेरी छत तक
खून से लिखे पैगाम भी
कई दफा पानी के रास्ते चलकर
मेरी चौखट तक आये
कैसे कैसे तरीके ईजाद करते हैं
यह प्रेम के दावे करने वाले लोग
प्रेम होता कहीं गर उनमें से किसी का सच्चा मेरे प्रति तो
आखिर क्यों नहीं उभरकर आता
मेरे ह्रदय पटल पर भी उनके
लिये कोई प्रतिउत्तर
एक प्रेम पत्र के रूप में मेरे प्रेम के हस्ताक्षर अंकित किया हुआ
उनमें से किसी एक सच्चे प्रेमी के
लिए और शायद सदा के लिए।