सिर से पानी पार होगा
अपने जन्मदाताओं का ही जब
नरसंहार सा अपमान होगा
कुछ अप्रिय, असामान्य, विघटनकारी अप्रत्याशित रूप से घटित होगा तो
किसी साधु संत से शांत
प्राणी को भी गुस्सा आना तो
लाजमी है
यह कई बार एक विडंबना हो जाती है कि
उसे उन्हीं लोगों के साथ
जीवन गुजारना होता है और
वह लाख चाहने पर भी
अपने भावों को प्रकट नहीं कर
सकता है
एक कहावत है ना कि
पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर
लेकिन मुंह से कोई कुछ कहे या
न कहे
कोई गलत कृत्य तो
हमेशा गलत ही रहेगा
समय कितना भी गुजर जाये
कुकृत्य के हृदय स्थल को
छलनी करते निशान
आजीवन मिटाये नहीं
मिटते
यहां तो किसी अपराध को भी
अंजाम नहीं दिया तो भी
मन में एक अपराध बोध रहता है कि काश! समय रहते कुछ और
सार्थक प्रयास किये होते तो
शायद कुछ बेहतर नतीजे अपने
द्वारा प्रतिपादित किये गये कार्यों के
मिल पाते
जो लेकिन सच में अपराधी होते
हैं उनके दिल में कभी अपराध बोध
की भावना जागृत होते ही कभी
देखी नहीं
जिन्होंने गलती करी
उनको पश्चाताप नहीं होता है
जिन्होंने प्रयास करे और
असफल रहे इस तरह के
लोगों के सानिध्य के
प्रभाव के कारण और
उनके असहयोग की वजह से
वह आज तक जल रहे हैं
पश्चाताप की अग्नि में
गुस्सा, अपराध बोध, पश्चाताप आदि यह सब
भावनायें हर मनुष्य
या जीव में
व्याप्त हैं
कभी समय यह अवसर दे
देता है कि
कोई इन्हे पूर्ण या आंशिक
रूप से व्यक्त कर पाये तो
कभी उन्हें भीतर दबाकर
रखना पड़ता है
घुट घुट कर जीना पड़ता है
मन आंशकित रहता है कि
किसी दिन यह ज्वालामुखी
के एक लावे सी ही फूट कर
एकाएक चारों तरफ फैलकर
तबाही का एक मंजर न बरपा दें।