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एक शेर पर सवार दुर्गा

वजह कोई खास नहीं होती लेकिन जिस किसी का एक बार हाथ उठ जाए तो फिर उस आदमी की शर्म खुल जाती है और किसी को मारने में उसे कोई संकोच या आत्मग्लानि नहीं होती है।

हमेशा की तरह आज भी वह आदतवश मुझे मारने के लिए मेरी तरफ बढ़ रहा था। कारण तो न मुझे पता था और न ही ईश्वर को। पहले तो मैं उससे डरी, सहमी और खुद को बचाने के लिए अपनी ही बाजुओं से मैंने खुद के चेहरे और शरीर को ढक लिया लेकिन अगले ही पल मैंने इस समस्या से निदान पाने का मन ही मन एक दृढ़ संकल्प उठाया। मैं जमीन से उठकर एकाएक सीधी तन कर उस राक्षस के सामने सीना चौड़ा करके आंखें अंगारों की तरह लाल लहू टपकाती उसकी तरफ एक लावा सा उगलती एक शेर पर सवार दुर्गा की भांति अपने रौद्र रूप में उसका संहार करने की स्थिति में तैनात हो गई। मेरा यह रूप उसके लिए अकल्पनीय था। वह भी कहीं अंदर से डर गया और मुझसे पंगा न लेते हुए मैदान छोड़कर वहां से भाग गया।