आज मिल गयी वो पुरानी गली
नज़र मुझको आयी खिली कली
नहीं भूल पायी बरसों से जिसको
वो मिट्टी हमारी जहाँ मैं पली
चलो आज तुमको मिलाए उससे
कहानियाँ उसकी सुनवाए किससे
जो सुनाती थी बचपन में दादी नानी
वही आज हम भी सुनाते हैं खुदसे
मुलाकात एक करनी थी सबसे
खुशियाँ बहुत सी बाँटनी थी सबसे
जो ग़म थे दबे मिटाने थे हमको
यही बात मुझको खींच लाई फिरसे
ऊँचाई पर जाकर न ज़मी भूल जाना
ज़मी पर रहकर न कमी भूल जाना
बहुत दूर तक गर दुनिया में जाना
इंसा हो इंसा का न दर्द भूल जाना