आज मैंने बादलों के रंग के आसमानी परिधान पहने थे। खुले हुए मेरे सुनहरे रंग के केश भी चारों तरफ एक आसमान में कौंधती बिजली से चमकते इधर उधर लहरा रहे थे।
जमीन को पीछे छोड़ती मैं आसमान से मिलने आज बादलों के परों पर बैठकर उड़ चली थी। मैं इस पल यह समझ नहीं पा रही थी कि मैं आखिरकार कौन हूं। एक इंसान, एक औरत, एक देवी, एक परी या कोई और। आज मेरे शब्दों में मेरी कोई पहचान पूछे तो मैं तो बस यही कहूंगी कि मैं एक आसमान की तरह ही विशाल ममतामयी दिल की मल्लिका थी। आसमान में भी विचरने के पीछे का मकसद था कि मैं अपने खोये हुए अजीजों को आज यहां ढूंढूं। अभी तो इस सफर की शुरुआत है, देखती हूं आगे बादलों के पार मैं जो चाहती हूं वह मुझे हासिल होता भी है कि नहीं।