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आकाशगंगा: पूनम भटनागर द्वारा रचित कविता

आकाशगंगा है मेरे सपनों की दुनिया,
जहां अक्सर जाने को मन करता मेरा।
ब्रह्मांड की मंदाकिनी गंगा हो तुम ,
जिसमें तैर जाने को मन करता मेरा।

तुम्हारे असंख्य तारों से मित्रता करने का मन
करता मेरा,
काश मिल पाती नव ग्रहों से भाग्य अपना
चमकाने को।
नक्षत्र अपना सही कर पाती, मिलकर आकाशगंगा के मेहमानों से।

इसमें डुबकी लगाते सप्त ऋषियों से,
ज्ञान अर्जित करने का मन करता मेरा।
काश! मिल पाती, भाई ध्रुव तारे और चंदा मामा से,
काश! मिल पाती उन अपनों से जो बन गए सितारे आकाशगंगा के।

आकाशगंगा रहस्य तुम्हारा जानने को मन करता मेरा,
तुमसे अवगत होने की अभिलाषा में, पढ़ लूं खगोल विज्ञान सारा।

छत से तुम्हें निहारने का मन करता मेरा,
लगता धरती को सफेद चमकीली चादर उड़ाती तुम।
ब्रह्मांड का दर्शन कराने वाली, आकाशगंगा पावन हो तुम ।