सप्ताह के पहले दिन यानी
मंडे अर्थात
इसकी शुरुआत से ही
संडे या किसी भी अवकाश का
इंतजार रहता है
उम्र बढ़ने से शरीर की ताकत कम
होती ही है
यह एक सत्य है
चाहे तो इसे कोई न स्वीकारे
आलस तो तन मन में
समाया ही रहता है
सप्ताह का अंत आते आते
यह शरीर बेजान सा घर के
एक कोने में ही कहीं पड़ा होता है
तन में थकान है पर
यह मन है कि हारने को तैयार नहीं अवकाश के रोज भी यह
बहुत सारे अपने कार्य निपटाता है लेकिन आराम से
हौले हौले
बिना किसी तनाव के
दिल में बहुत सारी इच्छायें
जागृत होती रहती हैं कि
कोई हमारे सिर पैर दबा दे
सिर और पूरे बदन की मालिश कर दे
कोई गरम गरम एक चाय की प्याली या
खाना खिला दे
कोई मेरे हिस्से के थोड़े से
काम कर दे
मुझे कोई लोरी गाकर सुना दे
तनाव मुक्त होने के
सुकून के कुछ पल ढूंढने के
एकांत के कुछ अनमोल क्षण अपने लिए खोजने के
बहुत प्रयत्न करता है
यह मन लेकिन
यह सब अपने मन सा ही
कुछ संभव हो पाये तब ना।