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बरसे सावन: प्रेम बजाज द्वारा रचित कविता

बरसे सावन-बरसे सावन, मनवा पिया मिलन को तरसे रे,
बैरन ये बारिश की बूंदें तन-मन में इक अगन लगाए रे,
हूक उठे जब उर-आंगन में जल बिन मछली तड़प रह जाए रे,
नैनअर्णव छलका जाए , हाय रे प्रीतम तुम क्यूं ना आए रे।

करके वादा सावन का , क्यूं वादा अपना तोड़ दिया ,
बरखा की ठंडी फुहारों में मुझको विरह में तड़पता छोड़ दिया,
बादल गरजे, बिजुरी चमके , मनवा मोरा धड़क – धड़क जाए रे,
राह देखूं मैं अपने पिया की कबहू आ के मोहे गरवा लगाए रे।

तुम बिन साजन मैं ऐसे तड़पूं जैसे जल बिन मीन रह ना पाए रे,
कोई जतन करो, आ के थाम लो मोहे, मोरा जिया मचला जाए रे,
बैरी सावन तु काहे आया अबहु मोरा सजन ना आ पाए रे ,
लिख- लिख चिठ्ठिया भेजूं सजन को , कोई तो उनका भी सन्देशा लाएं रे ।

साजन मोरा है उस पार , मैं इस पार , बिन नाव के कौन दरिया पार कराए रे,
हाए करो कोई जतन, कोई तो पिया से दिओ मिलाए रे ।