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बरसे सावन: उमानाथ त्रिपाठी द्वारा रचित कविता

बरसे सावन बादल गरजे
काले मेघ हैं नभ में छाये,
झूम झूम के पानी बरसे
उमंगों से भरा हुआ तन मन ।

हरियाली खेतों में छायी
नयनों को अभिराम दे रही,
मदहोश कर रही है बारिश
मयूर नृत्य कर रहे वन वन ।

परदेश गये हैं पिया कमाने
गूँज रही मन में शहनाई,
प्रियतमा घर में बैठी डगर निहारे
आयें पिया कर लें आलिंगन ।

डालों पर झूले पड़े हुये हैं
सुन्दर युवतियाँ मल्हार गा रही,
पेंग मारकर झूला झूलें
मन हो गया है मधुवन ।