in

पहली बारिश: शीतल प्रधान देशपांडे द्वारा रचित कविता

मन को मेरे रीझा रही थी, ये पहली पहली बारिश
जाग रही थी मन में मेरे, हलकिसी एक ख्वाहिश
बारिश के मोती झेल रही थी, बैठकर घरके छज्जे से
मानों दिनभर की थकान मेरी, धूल रही थी पानी से
इच्छा हो रही थी बहुत उस रिमझिम में नाचने की
बारिश की बूँदोके ताल से अपने ताल को मिलाने की
फिक्र ना थी बिल्कुल कपड़ों के भीग जाने की
ना थी चिंता कीचड़ से सने मेरे खूबसूरत पैरों की
गा रहे थे मेंढक भी अपना गाना कहीं दूर
मजीरा लेकर साथ उन्हें, दे रहे थे झिंगुर
सजी थी महफ़िल, बिजलियों की कड़कड़ाहट से
हवाऐं भी आते जाते मानों, सुना रही थी सरगम
नई उमंग थी छाई चिड़ियों की मीठी आवाज में
लगी हुई थी मानों वो मल्हार गीत सुनाने में
रंगबिरंगे फूलों की मंद सुगंध थी फैली हुई
खेत भी सारे खुश थे ओढ़के हरियाली नई नई
पानी की बूंदे मुझपर इस कदर थी बरस रही
तन को मेरे करके गिला मन को भीगो गई
माहौल में ऐसे मुझको पिया की याद सताई
गूंज रही थी कानों में मेरे मिलन की शहनाई