‘नैनों का उनसे उलझना सुलझना
बातों के जादू में गिरना सम्भलना
रेशम की डोरी से पेंच लड़ाना
जाने बढ़ी कब पींग चढ़ीं, नज़दीकियां
ज़ुल्फ़ों का तौबा, बिखरना संवरना
ख़्वाबों का रोज़ाना बनना बिगड़ना
चूड़ी और पायल खनकना छनकना
सतरंगी लगें, मधुरिम ये, नज़दीकियां
बाबा की लोरी का राग समझना
मल्हारी,कजरी और फाग समझना
अम्मा की आँखों की भाषा को पढ़ना
आया तभी जब मन से निखारी, नज़दीकियां
उम्र की बेड़ी को तोड़ गिराना
रस्मों रिवाज़ को छोड़ निभाना
ख़्वाहिशों के खुले गगन में उड़ जाना
मनरंगी हुई जब खुद से सँवारी , नज़दीकियां
झांका जो अपने अंदर तो पाया
जग सारा अपना ,नहीं कुछ पराया
थोड़ी समझ, थोड़ी आशा से देखो
बढ़ाकर जरा सबसे प्यारी ये, नज़दीकियां’