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नूतन वर्ष: डॉ. राज करन द्विवेदी द्वारा रचित कविता

नूतन वर्ष नूतन संकल्प नव प्रमाद विषाद.
जो रहा वही हुआ वही होगा किसको याद.

भूलने की कला मानव की मिली अप्रतिम.
रिश्ते कर्तव्य तोड़ना परम्परा कभी न कम.

जश्न मनाने का ऐसा ये और बहाना अच्छा.
वरना दुखिया जीवन हर पग देता है परीक्षा.

कितना औपचारिक हुआ नव सभ्य जीवन.
चहारदिवारियो में उग आये बबूल के कानन.

झूठी ही सही चलो फिर कोई अहद लेते हैं.
दुनिया के बहाने स्वयम को ही धोखे देते हैं.

न गरीबी हटेगी और न महल सिकुड़ पायेंगे .
धोखे देने को नित्य नवीन प्रपंच गढ़े जायेंगे.

एक हाथ चन्दन दूजे हाथ में कालिख होगी .
चन्दन दिखा चेहरों पे कालिख मालिश होगी.

दूसरे के कालिख पोत खुद को उजला बतायें.
कलंक काली करतूत कालाधन सबसे छुपायें .

कैसे कहें इस साल मन्दिर मस्जिद नहीं होगी.
वो बुलडोजर चलाने की शौके जिद नहीं होगी.